Story of Chhath Puja
By: MD AADIL SHAMIM
छठ महापर्व
छठ पूजा
सनातन धर्म के लोगों के द्वारा मनाया जाने वाला बहुत बड़ा महा पर्व है जिसे 4 दिनों तक लगातार मनाया जाता है यहां पर मुख्य रुप से बिहार
झारखंड पूर्वी उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों और नेपाल के तराई
क्षेत्रों में मनाया जाता है यह एक मात्र ही बिहार या पूरे भारत का ऐसा पर्व है जो
वैदिक काल से चला आ रहा है और यह बिहार की संस्कृति बन चुका है यह पर्व बिहार के
आर्य संस्कृति की एक छोटी सी झलक दिखाता है। छोटी सी झलक दिखाता है यह पर मुख्य
रूप से ऋषि द्वारा लिखी गई ऋग्वेद में सूर्य पूजन ऊषा पूजन और आर्य परंपरा के
अनुसार यह पर्व मनाया जाता है धीरे-धीरे प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्व भर में
प्रचलित हो गया है कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाए खाए से छठ
पर्व का आरंभ होता है फिर षष्ठी तिथि को मुख्य छठ व्रत करने के बाद अगले दिन
सप्तमी को उगते सूरज को जल देने के बाद व्रत का समापन किया जाता है इस व्रत में
संतान की लंबी आयु उज्जवल भविष्य और सुख समृद्धि की कामना की जाती है छठ का व्रत
काफी कठिन होता है इस मे व्रति को 24 घंटे से अधिक समय तक व्रत करना होता है इसमें मुख्य रूप से और छठ माता की
उपासना की जाती है और उगते सूर्य को जल दिया जाता है
हिस्ट्री (History)
छठ पर्व की शुरुआत आखिर
कैसे हुई इसकी पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं ?
व्रत कथा के
अनुसार प्रियंवदा नाम के एक राजा थे उनके पत्नी का नाम मालिनी था दोनों को कोई
संतान नहीं था इस बात से राजा और उनकी पत्नी दोनों दुखी रहते थे उन्होंने 1 दिन संतान प्राप्ति के लिए महा ऋषि कश्यप से पुत्र
प्राप्ति यज्ञ कराया उस दौरान यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा के लिए उनकी
पत्नी माली को खाने के लिए दी गई थी रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन
वह पैदा हुआ। इस बात का पता चलते ही राजा को बहुत दुख हुआ और वह संतान सुख में
आत्महत्या करने के मन बना चुके थे।
लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश
की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुई और कहा कि में ब्रह्मा की मानस पुत्री
देवसेना हूं। मैं लोगों को पुत्र का
सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं। यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें
पुत्ररत्न प्रदान करुंगी। देवी की बातो से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का
पालन किया। राजा और उनकी पत्नी कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन पूरी विधि
विधान से पूजा की जाती है। इस पूजा को फलस्वरूप उन्हें सुंदर पुत्र की प्राप्ति
हुई।, तभी से छठ का
पावन पर्व मनाया जाने लगा।
महाभारत के
अनुसार सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की थी। कारण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह हर दिन
घंटो कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ देते थे। सूर्य की कृपा से वह महान
योद्धा बने, आज भी छठ में
अरग देने यही प्रथा प्रचलित है।
जब पांडव
सारा राजपाट जुए में हार गए वनवास के दौरान, द्रौपदी हर कार्तिक मास के रकुल पक्ष की सृष्टि तिथि को छठ का व्रत रखती थी।
इस व्रत के प्रभाव से उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो और पांडवों को उनका खोया हुआ
राजपाट वापस मिल गया।
रामायण के
अनुसार माना जाता है, भगवान भगवान
श्री राम के कुलदेवता सूर्यदेव थे इसलिए भगवान राम और माता सीता जब लंका से रावण
कब वध करके अयोध्या लौटे तो अपने कुल देवता का आशीर्वाद पाने के लिए देवी सीता के
साथ षष्ठी तिथि का व्रत रखा और सरयू नदी में डूबते सूर्य को फल, मिष्ठान और अन्य वस्तुओं से अर्घ्य दिया और सप्तमी तिथि को
भगवान राम ने उगते सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त किया इसके
बाद भगवान राम ने राजकार्य का संभालना शुरू किया और तभी से आम लोग सूर्य षष्टि का
यह पर्व मनाने लगे।
छठ पूजा के चार
महत्वपूर्ण दिन होते हैं:
1) छठ पूजा का पहला दिन होता है ( नहाए खाए) :
इस दिन घर की
सफ़ाई कर उसे पवित्र किया जाता हैं। इसके बाद वृति स्नान करने के बाद वस्तुत भोजन
करके व्रत की शुरुआत करती है एजिंग चना दाल लौकी की सब्जी रोटी के साथ खाई जाती
है। पकाएं खाने को सबसे पहले व्यक्ति खाती है और उसके बाद घर के बाकी सदस्य खाते
हैं।
2) छठ पूजा का दूसरा दिन है खरना :
इस दिन व्रत करने वाले
व्यक्ति पूरा दिन का उपवास रखते हैं जिसमें ना ही वह खा सकते हैं ना ही वह कुछ भी
सकते हैं, शाम के समय
वाली खीर प्रसाद के तौर पर बनाई जाती है जिसे रसिया फिर भी कहते हैं, जिसे पूजा करने के बाद वृति खाते हैं। उसी रात छठी मैया के
लिए चासनी गेहूं का आटा घी से बनी मिठाई ठेकुआ प्रसाद के तौर पर बनाते हैं।
3) छठ पूजा का तीसरा दिन है संध्या अर्घ्य:
तीसरा दिन छठ
पूजा का मुख्य दिन है, इस पुरे दिन
वृति निर्जय व्रत रखते हैं, फिर शाम में
तालाब या नदी के पास खड़ा होकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती है। जब प्रतिघाट की तरफ
अर्थ देने जा रही होती है उनका बेटा या घर का कोई एक पुरुष के पास की बनी हुई
टोकरी लेकर आगे चल रहा होता है जिसे भंगी कहते हैं कि में फल प्रसाद और पूजा की
सामग्री रखी जाती है।
4) छठ पूजा का चौथा दिन उषा अर्घ्य (प्रातः अर्घ्य)
इस दिन उगते
हुए सूर्य की पूजा की जाती है। वृत्ति और घर के अन्य लोग एक बार फिर नदी के किनारे
इकट्ठा होते हैं और छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए उनके लिए गीत गाते हैं। फिर
अंत में व्रती प्रसाद और कच्चे दूध के शरबत का सेवन करके व्रत तोड़ते हैं। और इस
तरह से छठ पूजा की समाप्ति होती है कौन है।
कौन है छठी मईया, और क्यों सूर्य
उपासना के मौके पर छठी मैया के जयकारे लगाकर उनकी पूजा की जाती है ?
मान्यता के अनुसार छठ
माता को ब्रह्मा की मानस पुत्री कहा जाता है। खा जाता है कि इनकी पूजा करने से
संतान प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र की मनोकामना पूरी हो जाती है।
एक अन्य मान्यता के
अनुसार इन्हे सुर्य देव की बहन भी कहा जाता है उनकी पूजा करने से और उनके गीत गाने
से सूर्य भगवान प्रसन्न होते हैं और सभी मानो कामना पूरी होती है।
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